राम वनवास व कौरव पांडव युद्ध का आधार भी था पुत्र मोह
पुत्र मोह के रोग से ही बर्बाद हो रहे हैं सियासी दल
उद्धव ठाकरे, मुलायम सिंह, लालू यादव, चौटाला, शिबू सोरेन, जोगी पुत्रमोह के शिकार
नई दिल्ली। प्राचीनकाल से सियासत में सत्ता पुत्र मोह की अहम भूमिका रही है और पुत्रमोह के कारण बड़ी-बड़ी अनैतिक लड़ाइयां भी लड़ी गई और उनके भयंकर परिणाम भी सामने आये हैं। रामायण युग को सबसे प्राचीन काल माना जाता है। इस काल में महाराजा दशरथ की तीन रानियों में से कैकेयी महारानी के पुत्रमोह ने राजतिलक वाले दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को बन जाने को विवश कर दिया था। यह श्री राम के साथ अन्याय ही माना गया है क्योंकि सबसे बड़ी संतान और हर तरह से दक्ष होने के कारण वही महाराज दशरथ के उत्तराधिकारी थे। इसी तरह महाभारत काल में पुत्र दुर्योधन के मोह में अंधे नेत्रहीन महाराजा धृतराष्ट्र ने पांडवों के साथ इतना अधिक अन्याय किया कि महाभारत जैसा विशाल युद्ध हुआ।
इसकी कथाएं आज भी हनारों साल बीतने के बाद भी चर्चित हैं। आज के युग में इसी पुत्र मोह के चलते देश के कई राजनीतिक दल, जो काफी तेजी से आगे बढ़ने के बाद नीचे तुड़क गये। इससे पहले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को सियासत में आगे बढ़ाने के लिए अपने ही दो भाइयों को आमने-सामने खड़ा कर दिया। एक और शिवपाल सिंह ने अखिलेश यादव के खिलाफ ताल ठोकी तो दूसरी ओर राम गोपाल यादव ने अखिलेश यादव को हर तरह से सहारा देकर पार्टी का राष्ट्रीय अध्याय बनाने में पूरी तरह से मदद की। इसका असर यह हुआ कि पार्टी इस महाभारत का शिकार हो गई और जनता के बीच जो साख बन रही थी वह खत्म हो गई। समाजवादी पार्टी की दुर्गति लोकसभा व विधानसभा चुनाव में देख चुके हैं। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के कुनबे में सत्ता का संघर्ष इसी तरह हुआ और लालू प्रसाद यादव अपने पुत्रों के बीच कोई ठोस फैसला नहीं कर सके। जब उनके पुत्र बालिग नहीं हुए थे तब जेल जाने से पूर्व अपनी कुर्सी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी थी।
हिन्दूवादी इसका नतीजा यह है कि 15 साल तक राज करने वाले दल को आज हालत दयनीय बनी हुई है। महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख हिन्दूवादी पाटी कहलाती है लेकिन इसके नेता उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा से पहले ही अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की योजना बनाई थी। अपनी योजना के लिए उद्धव ठाकरे ने दूसरी हिन्दुत्त्ववादी पार्टी भाजपा से 30 साल पुराने संबंध तोड़ लिये। हालांकि संबंध तोड़ने के बाद जिन दलों कांग्रेस और एनसीपी ने आदित्य ठाकरे पर भरोसा नहीं किया और उद्धव ठाकरे को ही मुख्यमंत्री बनने के लिए विवश कर दिया। अब उनकी पार्टी की सास को बट्टा लग गया है। इस सास को बचाने के लिए ही बार-बार वह स्वर्य को हिन्दुत्ववादी पार्टी कह रहे हैं। साथ ही अयोध्या का दौरा करके राममंदिर के लिए एक करोड़ रुपये देने का ऐलान भी किया है। पुत्र मोह का एक और बड़ा उदाहरण पशिचमी उत्तर प्रदेश में मिलता है। वो है राष्ट्रीय लोकदल के सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह का। चौधरी अजित सिंह, उन चौधरी चरण सिंह की इकलौती संतान हैं, जिन्होंने अजित सिंह की जगह हेमवती नंदन बहुगुणा और मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी कहा था। चौधरी चरण सिंह ने सियासत के लिए वंश नहीं बल्कि योग्यता को तरजीह दी थी। लेकिन अजित सिंह ने अपने पिता चौधरी चरण सिंह की इस सीख से मुंह मोड़कर अपने पुत्र जयंत चौधरी के अलावा किसी अन्य नेता को आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया। इसके चलते राष्ट्रीय लोकदल इन्हीं दोनों पिता-पुत्र के बीच सिमटकर रह गया है। विरासत हरियाणा में चौधरी देवी लाल का भारतीय राजनीति में अच्छा सासा दबदबा था। उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने भी अपने पुत्र मोह में अपने ही दल का बंटाधार कर लिया। किसान राजनीति के सिरमौर माने जाने वाले देवीलाल के स्तवे की बदौलत ओम प्रकाश चौटाला ने हरियाणा में राज किया लेकिन वह बेटों को लेकर राजनीति के जिस झंझावात में फंसे, उससे उनके दल की दशा दलदल सी हो गई। पंजाब में सबसे युवा और सबसे बुजुर्ग मुख्यमंत्री का तगमा हासिल करने वाले अकाली दल के अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल की राजनीति भी पुत्रमोह का शिकार हो गई और उनका दल पंजाब की सत्ता में पुनः आने के लिए संघर्ष कर रहा है लेकिन बादल के पुराने वोटर अब उनके दल पर पहले जैसा विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। इन प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा केन्द्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने भी अपने बेटे चिराग पासवान को आगे बढ़ाया और उनके दल की सियासत फिलहाल ठीकठाक रही है। चिराग पासवान को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है। इसी तरह से हाल ही में झारखंड में चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने वाले हेमंत सोरेन को राजनीति अपने पिता शिबू सोरेन से विरासत में मिली है। कांग्रेस के धाकड़ नेता रहे अजीत जोगी ने अपने राज्य छत्तीसगढ़ में अपने बेटे अमित जोगी को आगे बढ़ाने की कोशिश की। हालांकि उनके बेटे ने विधानसभा के सदस्य तक का सफर तो आसानी से तय कर लिया लेकिन इसके आगे की कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर सके हैं।